Friday, 12 January 2018

शनिदेव के मंत्र (Shanidev ke Mantra)

।। ॐ शं शनैश्चराय नमः ।।
हिंदू धर्म के अनुसार शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है। मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि शनिदेव दंडाधिकारी है यही एक ऐसे देव हैं जो मनुष्य के द्वारा किए गए पापों का दंड देते हैं। शनिदेव की विधि विधान से पूजा करने पर सभी प्रकार के कष्ट व दिक्कतें समाप्त हो जाती हैं और घर में सुख समृद्धि का वास होता है। शनिदेव की उपासना में शनिदेव की आरती,  शनिदेव की चालीसा व शनिदेव के मंत्रों का जाप करना चाहिए ऐसा करने से शनिदेव अत्यधिक प्रसन्न होते हैं और शुभ फल देते हैं।

शनिदेव के मंत्र (Shanidev ke Mantra)
                                                                                                
शनिदेव के मंत्र (Mantra of Lord Shani Dev)
शनि देव का तांत्रिक मंत्र ( Tantarik Mantra of Shani Dev)
ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः।
                                                                                                
शनिदेव के वैदिक मंत्र (Vedic Mantra of Shani Dev)
ऊँ शन्नो देवीरभिष्टडआपो भवन्तुपीतये।
                                                                                                
शनिदेव का एकाक्षरी मंत्र (Ekashari mantra of Shani Dev)
ऊँ शं शनैश्चाराय नमः।
                                                                                                
शनिदेव का गायत्री मंत्र (Gayatri Mantra of Shani Dev)
ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।।
                                                                                                
भगवान शनिदेव के अन्य मंत्र (Other Mantra of Bhagwan Shani Dev)
ऊँ श्रां श्रीं श्रूं शनैश्चाराय नमः।
ऊँ हलृशं शनिदेवाय नमः।
ऊँ एं हलृ श्रीं शनैश्चाराय नमः।
ऊँ मन्दाय नमः।।
ऊँ सूर्य पुत्राय नमः।।
                                                                                                
साढ़ेसाती से बचने के मंत्र (Shani Mantra for Shani Dosha)
शनिदेव की साढ़ेसाती के प्रकोप से बचने के लिए शनिदेव को इन मंत्रों द्वारा प्रसन्न करना चाहिए:
ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम ।
उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात ।।
ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।शंयोरभिश्रवन्तु नः। ऊँ शं शनैश्चराय नमः।।
ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌।छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌।।
                                                                                                
क्षमा के लिए शनि मंत्र (Shani Mantra in Hindi)
निम्न मंत्रों के जाप द्वारा शनिदेव से अपने गलतियों के लिए क्षमा याचना करें।
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेहर्निशं मया।
दासोयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर।।
गतं पापं गतं दु: खं गतं दारिद्रय मेव च।
आगता: सुख-संपत्ति पुण्योहं तव दर्शनात्।।
                                                                                                
अच्छे स्वास्थ्य के लिए शनि मंत्र (Shani Mantra for Health in Hindi)
शनिग्रह को शांत करने तथा रोग को दूर करने के लिए शनिदेव के इस मंत्र का जाप करना चाहिए:
ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिहा।
कंकटी कलही चाउथ तुरंगी महिषी अजा।।
शनैर्नामानि पत्नीनामेतानि संजपन् पुमान्।दुःखानि नाश्येन्नित्यं सौभाग्यमेधते सुखमं।।
                                                                                                
शनिदेव की पूजा के समय निम्न मंत्रों का प्रयोग करना चाहिए:
भगवान शनिदेव की पूजा करते समय इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें चन्दन लेपना चाहिए-
भो शनिदेवः चन्दनं दिव्यं गन्धादय सुमनोहरम् |
विलेपन छायात्मजः चन्दनं प्रति गृहयन्ताम् ||
                                                                                                
भगवान शनिदेव की पूजा में इस मंत्र का जाप करते हुए उन्हें अर्घ्य समर्पण करना चाहिए-
ॐ शनिदेव नमस्तेस्तु गृहाण करूणा कर |
अर्घ्यं च फ़लं सन्युक्तं गन्धमाल्याक्षतै युतम् ||
                                                                                                
इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान श्री शनिदेव को प्रज्वलीत दीप समर्पण करना चाहिए-
साज्यं च वर्तिसन्युक्तं वह्निना योजितं मया |
दीपं गृहाण देवेशं त्रेलोक्य तिमिरा पहम्. भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने ||
                                                                                                
इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान शनिदेव को यज्ञोपवित समर्पण करना चाहिए और उनके मस्तक पर काला चन्दन (काजल अथवा यज्ञ भस्म) लगाना चाहिए-
परमेश्वरः नर्वाभस्तन्तु भिर्युक्तं त्रिगुनं देवता मयम् |
उप वीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः ||
                                                                                                
इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान श्री शनिदेव को पुष्पमाला समर्पण करना चाहिए-
नील कमल सुगन्धीनि माल्यादीनि वै प्रभो |
मयाहृतानि पुष्पाणि गृहयन्तां पूजनाय भो ||
                                                                                                
भगवान शनिदेव की पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करते हुए उन्हें वस्त्र समर्पण करना चाहिए-
शनिदेवः शीतवातोष्ण संत्राणं लज्जायां रक्षणं परम् |
देवलंकारणम् वस्त्र भत: शान्ति प्रयच्छ में ||
                                                                                                
शनिदेव की पूजा करते समय इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें सरसों के तेल से स्नान कराना चाहिए-
भो शनिदेवः सरसों तैल वासित स्निगधता |
हेतु तुभ्यं-प्रतिगृहयन्ताम् ||
                                                                                                
सूर्यदेव पुत्र भगवान श्री शनिदेव की पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करते हुए पाद्य जल अर्पण करना चाहिए-
ॐ सर्वतीर्थ समूदभूतं पाद्यं गन्धदिभिर्युतम् |
अनिष्ट हर्त्ता गृहाणेदं भगवन शनि देवताः ||
                                                                                                
भगवान शनिदेव की पूजा में इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें आसन समर्पण करना चाहिए-
ॐ विचित्र रत्न खचित दिव्यास्तरण संयुक्तम् |
स्वर्ण सिंहासन चारू गृहीष्व शनिदेव पूजितः ||
                                                                                                
इस मंत्र के द्वारा भगवान श्री शनिदेव का आवाहन करना चाहिए-
नीलाम्बरः शूलधरः किरीटी गृध्रस्थित स्त्रस्करो धनुष्टमान् |
चतुर्भुजः सूर्य सुतः प्रशान्तः सदास्तु मह्यां वरदोल्पगामी ||

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षट्तिला एकादशी की व्रत कथा (Shattatila Ekadashi ki vrat katha)

Vishnu bhagwan
।। ॐ नमो भगवते् वासुदेवाय् ।।
हिंदू मान्यता के अनुसार षट्तिला एकादशी का व्रत अत्यधिक महत्वपूर्ण होता इस व्रत को करने से बैकुंठ में स्वर्ग प्राप्त होता है। शास्त्रों में पुराणों के अनुसार वर्ष में 24 एकादशी होती हैं 24 एकादशियों में से जो माघ के महीने में कृष्ण पक्ष में आती है उसे षट्तिला एकादशी कहते हैं। मान्यता के अनुसार माघ का महीना अत्यधिक पुण्यदायी होता है। इस बार षट्तिला एकादशी 12 जनवरी 2018, शुक्रवार को है। षट्तिला एकादशी के व्रत में तिल से बनी वस्तुओं का प्रयोग अत्यधिक प्रकार से करने पर व एकादशी का नियमानुसार व्रत करने से विष्णु भगवान अत्यधिक प्रसन्न होते हैं और शुभ फल देते हैं।
Vishnu bhagwan
षट्तिला एकादशी व्रत करने की विधि (Shattatila Ekadashi vrat karnr ki Vidhi)
मान्यता के अनुसार माघ महीना अत्यधिक पवित्र और पावन माना जाता है। एकादशी का व्रत हर व्यक्ति को विधि विधान पूर्वक करना चाहिए। इस दिन व्रत करने वाले वर्ति को सुबह-सुबह स्नान करके विष्णु भगवान की प्रतिमा के सामने धूप दीप वह पुष्प अर्पण करना चाहिए और इसके साथ उड़द की दाल और तिल से मिश्रित खिचड़ी का भोग विष्णु भगवान को लगाना चाहिए इसके साथ विष्णु भगवान विष्णु भगवान का मंत्र 'ओम नमो भगवते्  वासुदेवाय्' का जाप 108 बार करना चाहिए। षट्तिला एकादशी के व्रत में तिल से बनी वस्तुओं का अत्यधिक प्रयोग करना चाहिए। इस प्रकार विष्णु भगवान की विधि विधान से पूजन अर्चना करने से षट्तिला एकादशी का व्रत संपन्न होता है।
Vishnu bhagwan
षट्तिला एकादशी की व्रत कथा (Shattatila Ekadashi ki vrat katha)
पद्म पुराण में भगवान व‌िष्‍णु ने नारद मुन‌ि से बताया है क‌ि 
षट्त‌िला एकादशी अन्न धन और सुख देने वाली है। इस एकादशी के संदर्भ में पुराणो के अनुसार जो कथा म‌िलती है उसके अनुसार एक स्‍त्री भगवान व‌िष्‍णु में बड़ी  भक्त थी और सभी व्रत रखती थी ज‌िससे उसका शरीर तो शुद्ध हो गया था लेक‌िन कभी अन्न दान नहीं देने के कारण मृत्यु के बाद वह बैकुंठ में तो पहुंच गई लेक‌िन उसे खाली कुट‌िया म‌िली।

स्‍त्री ने भगवान से पूछा क‌ि प्रभु बैकुंठ में आकर भी मुझे 

खाली कुट‌िया क्यों म‌िली है तब भगवान व‌िष्‍णु ने बताया क‌ि तुमने कभी कुछ दान नहीं क‌िया और जब मैं तुम्हारे उद्धार के ल‌िए दान मांगने तुम्हारे पास आया तो तुमने मुझे म‌िट्टी का एक ढेला पकड़ा द‌िया ज‌िससे तुम्हे यह फल म‌िला है। अब इस समस्या का एक मात्र उपाय है क‌ि तुम व‌िध‌ि पूर्वक षट्त‌िला एकादशी का व्रत करो। इस व्रत से म‌ह‌िला की कुट‌िया अन्न धन से भर गई।

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Wednesday, 10 January 2018

श्री गणेश जी की चालीसा (Shri Ganesha ji ki Chalisa)

Ganesh ji
।। ॐ श्री गणेशाय नमः ।।
हिंदू मान्यता के अनुसार श्री गणेश भगवान को हिंदू धर्म में सर्वप्रथम पूजनीय देवता माना जाता है। श्री गणेश भगवान की पूूजा बुधवार को की जाती है। गणेश भगवान की पूजा के बाद आरती व चालीसा को पढ़ना चाहिए ऐसा करने से गणेश भगवान  अत्यधिक प्रसन्न होते हैं। श्री गणेश भगवान को विघ्नहर्ता कहा जाता है। श्री गणेश भगवान को लड्डू का भोग  अत्यधिक प्रिय है। गणेश भगवान की पूजा हर शुभ कार्य के आरंभ में की जाती है, जिससे सभी कार्य सही तरीके से संपन्न हो जाते हैं। श्री गणेश भगवान की आराधना व पूजा विधि विधान से करने पर घर में खुशहाली, व्यापार में बरकत तथा हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है।
श्री गणेश जी की चालीसा (Shri Ganesha ji ki Chalisa)

॥दोहा॥
जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥
जय जय जय गणपति गणराजू।
मंगल भरण करण शुभ काजू ॥


॥चौपाई॥
जै गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्घि विधाता॥
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं । मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥
(1)

सुन्दर पीताम्बर तन साजित । चरण पादुका मुनि मन राजित ॥
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता । गौरी ललन विश्वविख्याता ॥
ऋद्घिसिद्घि तव चंवर सुधारे । मूषक वाहन सोहत द्घारे ॥
कहौ जन्म शुभकथा तुम्हारी । अति शुचि पावन मंगलकारी ॥
(2)

एक समय गिरिराज कुमारी । पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी ॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा ॥
अतिथि जानि कै गौरि सुखारी । बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥
अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥
(3)

मिलहि पुत्र तुहि, बुद्घि विशाला । बिना गर्भ धारण, यहि काला ॥
गणनायक, गुण ज्ञान निधाना । पूजित प्रथम, रुप भगवाना ॥
अस कहि अन्तर्धान रुप है । पलना पर बालक स्वरुप है ॥
बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना ॥
(4)

सकल मगन, सुखमंगल गावहिं । नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥
शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं । सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा । देखन भी आये शनि राजा ॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं । बालक, देखन चाहत नाहीं ॥
(5)

गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो । उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो ॥
कहन लगे शनि, मन सकुचाई । का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ । शनि सों बालक देखन कहाऊ ॥
पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा । बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥
(6)

गिरिजा गिरीं विकल है धरणी । सो दुख दशा गयो नहीं वरणी ॥
हाहाकार मच्यो कैलाशा । शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा ॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो । काटि चक्र सो गज शिर लाये ॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो । प्राण, मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥
(7)

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे । प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे ॥
बुद्घ परीक्षा जब शिव कीन्हा । पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥
चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई ॥
चरण मातुपितु के धर लीन्हें । तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥
(8)

तुम्हरी महिमा बुद्घि बड़ाई । शेष सहसमुख सके न गाई ॥
मैं मतिहीन मलीन दुखारी । करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा । जग प्रयाग, ककरा, दर्वासा ॥
अब प्रभु दया दीन पर कीजै । अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै ॥
(9)


॥दोहा॥
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान॥
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश ॥

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Tuesday, 9 January 2018

हनुमान जी की व्रत कथा (Hanuman ji ki vrat katha)

Hanuman ji
।। जय श्री राम ।।
हिंदू मान्यता के अनुसार हनुमानजी हिंदू धर्म के देवता है।मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि हनुमान जी के व्रत मंगलवार और शनिवार को किए जाते हैं। हनुमान जी के व्रत करने से मांगलिक दोष दूर होता है और मान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि हनुमान जी के व्रत करने से शनि की साढ़ेसाती के कष्टों को दूर किया जा सकता है। कहा जाता है कि हनुमान जी की विधि विधान से पूजा करने पर हनुमान जी अत्यधिक प्रसन्न होते हैं। हनुमान जी के व्रत कथा पढ़ने के बाद हनुमान जी की चालीसा और सुंदरकांड का पाठ भी अवश्य करना चाहिए। हनुमान जी के व्रत करने से मंगल ग्रह दोष दूर होता है।

हनुमान जी के व्रत करने की विधि (Hanuman ji ke vrat karne ki vidhi)
यह व्रत कम से कम लगातार 21 मंगलवार तक किया जाना चाहिए। व्रत वाले दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर लें। उसके बाद घर के ईशान कोण में किसी एकांत में बैठकर हनुमानजी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इस दिन लाल कपड़े पहनें और हाथ में पानी ले कर व्रत का संकल्प करें। हनुमान जी की मूर्ति या तस्वीर के सामने घी का दीपक जलाएं और भगवान पर फूल माला या फूल चढ़ाएं।
फिर रुई में चमेली के तेल लेकर बजरंगबली के सामने रख दें या मूर्ति पर तेल के हलके छीटे दे दें। इसके बाद मंगलवार व्रत कथा पढ़ें। साथ ही हनुमान चालीसा और सुुंदरकांड का पाठ करें। फिर आरती करके सभी को व्रत का प्रसाद बांटकर, खुद भी लें। दिन में सिर्फ एक पहर का भोजन लें। अपने आचार-विचार शुद्ध रखें। शाम को हनुमान जी के सामने दीपक जलाकर आरती करें।
हनुमान जी की व्रत कथा (Hanuman ji ki vrat katha)
प्राचीन समय की बात है किसी नगर में एक ब्राह्मण दंपत्ति रहते थे उनके कोई संतान न होन कारण वह बेहद दुखी थे। हर मंगलवार ब्राह्मण वन में हनुमान जी की पूजा के करने जाता था। वह पूजा करके बजरंगबली से एक पुत्र की कामना करता था। उसकी पत्नी भी पुत्र की प्राप्ति के लिए मंगलवार का व्रत करती थी। वह मंगलवार के दिन व्रत के अंत में हनुमान जी को भोग लगाकर ही भोजन करती थी।
एक बार व्रत के दिन ब्राह्मणी ने भोजन नहीं बना पाया और न ही हनुमान जी को भोग लगा सकी। तब उसने प्रण किया कि वह अगले मंगलवार को हनुमान जी को भोग लगाकर ही भोजन करेगी। वह भूखी प्यासी छह दिन तक पड़ी रही।मंगलवार के दिन वह बेहोश हो गई। हनुमान जी उसकी श्रद्धा और भक्ति देखकर प्रसन्न हुए। उन्होंने आशीर्वाद स्वरूप ब्राह्मणी को एक पुत्र दिया और कहा कि यह तुम्हारी बहुत सेवा करेगा।
बालक को पाकर ब्राह्मणी बहुत खुश हुई। उसने बालक का नाम मंगल रखा। कुछ समय उपरांत जब ब्राह्मण घर आया, तो बालक को देख पूछा कि वह कौन है? पत्नी बोली कि मंगलवार व्रत से प्रसन्न होकर हनुमान जी ने उसे यह बालक दिया है। यह सुनकर ब्राह्मण को अपनी पत्नी की बात पर विश्वास नहीं हुआ। एक दिन मौका पाकर ब्राह्मण ने बालक को कुएं में गिरा दिया।
घर पर लौटने पर ब्राह्मणी ने पूछा कि मंगल कहां है? तभी पीछे से मंगल मुस्कुरा कर आ गया। उसे वापस देखकर ब्राह्मण चौंक गया। उसी रात को बजरंगबली ने ब्राह्मण को सपने में दर्शन दिए और बताया कि यह पुत्र उन्होंने ही उसे दिया है। सच जानकर ब्राह्मण बहुत खुश हुआ। जिसके बाद से ब्राह्मण दंपत्ति नियमित रूप से मंगलवार व्रत रखने लगे। मंगलवार का व्रत रखने वाले मनुष्य पर हनुमान जी की अपार कृपा होती है।
हनुमान जी के व्रत का उद्यापन (Hanuman ji ke vrat ka udyapann)
इच्छा अनुसार मंगलवार के व्रत होने के बाद उससे अगले  मंगलवार को विधि-विधान से हनुमान जी का पूजन करके उन्हें चोला चढ़ाएं। फिर अपनी  क्षमता अनुसार ब्राह्मणों को बुलाकर उन्हें भोजन कराएं और क्षमतानुसार दान–दक्षिणा दें।

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Monday, 8 January 2018

महामृत्युंजय मंत्र (Mahamrityunjay Mantra)

Shiv Shankar
।। ॐ नमः शिवाय ।।
हिंदू मान्यता के अनुसार शास्त्रों और पुराणों में रोगों से मुक्ति और अकाल मृत्यु से बचने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए। महामृत्युंजय मंत्र शिव जी का सबसे बड़ा मंत्र है। महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव को खुश करने का मंत्र है। इसके प्रभाव से इंसान मौत के मुंह में जाते-जाते बच जाता है, मरने वाले रोगी भी महाकाल शिव की अद्भुत कृपा से जीवन पा लेता है। बीमारी, दुर्घटना, अनिष्ट ग्रहों के प्रभावों से दूर करने, मौत को टालने और आयु बढ़ाने के लिए सवा लाख महामृत्युंजय मंत्र जप करने का विधान है। महामृत्युंजय मंत्र सर्वप्रथम ऋषि मार्कंडेय के द्वारा उपयोग में लाया गया था। महामृत्युंजय मंत्र शनि ग्रह की साढ़ेसाती के प्रभाव से बचाता है तथा महामृत्युंजय मंत्र के जाप से कालसर्प दोष व पितृदोष का निवारण किया जाता है।

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते समय ये बातें रखें ध्यान जो आपके लिए बहुत ही जरुरी है-

- महामृत्युंजय मंत्र का जाप अर्थात उच्चारण ठीक ढंग से करना चाहिए।

- इस मंत्र का जाप करने के लिए कोई संख्या निश्चित निर्धारित करनी चाहिए और हो सके तो प्रतिदिन उस की संख्या बढ़ा दें परंतु एक बात का ध्यान रखें मंत्र जाप करने की संख्या घटाएं नहीं।

- मंत्र जाप करने का उच्चारण आंतरिक भाव से होना चाहिए।

- महामृत्युंजय मंत्र का जाप शिव जी की प्रतिमा के सामने करना चाहिए। 

- महामृत्युंजय मंत्र के जाप करते समय व्यक्ति को शाकाहारी भोजन करना चाहिए।

- महामृत्युंजय मंत्र को पढ़ते समय व्यक्ति को शिवजी की प्रतिमा के सामने धूप दीप जलाना चाहिए।

- महामृत्युंजय मंत्र के जाप करते हुए जल अभिषेक करते रहना चाहिए।

- महामृत्युंजय मंत्र का जाप रुद्राक्ष माला से करना चाहिए इससे शिवजी अत्यधिक प्रसन्न होते हैं।

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- शिवजी की आरती
- शिवजी की चालीसा
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Sunday, 7 January 2018

सूर्यदेव के मंत्र (Suryadev ke Mantra)

Suryadev
।। ॐ सूर्याय नमः ।।
हिंदू मान्यता के अनुसार सूर्यदेव हिंदू धर्म के साक्षात दिखाई देने वाले देवता हैं। मान्यता के अनुसार सूर्यदेव की विधि विधान से पूजन करने पर सफलता प्राप्त होती है। सूर्यदेव को अर्घ्य देते समय मंत्रों का जाप करना चाहिए ऐसा करने से सूर्यदेव अत्यधिक प्रसन्न होते हैं।

सूर्यदेव के मंत्र (Suryadev ke Mantra)
                                                                                                
पुत्र की प्राप्ति के लिए सूर्य देव के इन मंत्रों का जाप करना चाहिए:  
 ऊँ भास्कराय पुत्रं देहि महातेजसे।
धीमहि तन्नः सूर्य प्रचोदयात्।।
                                                                                                
हृदय रोग, नेत्र व पीलिया रोग एवं कुष्ठ रोग तथा समस्त असाध्य रोगों को नष्ट करने के लिए सूर्य देव के इस मंत्र का जाप करना चाहिए:  

ऊँ हृां हृीं सः सूर्याय नमः।।
                                                                                                
व्यवसाय में वृद्धि करने के लिए सूर्य देव के इस मंत्र का जाप करना चाहिए:

ऊँ घृणिः सूर्य आदिव्योम।।
                                                                                                
अपने शत्रुओं के नाश के लिए सूर्य देव के इस मंत्र का जाप करना चाहिए:
 

शत्रु नाशाय ऊँ हृीं हृीं सूर्याय नमः
                                                                                                
पनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए सूर्य देव के इस मंत्र का जाप करना चाहिए:  

ऊँ हृां हृीं स: सूर्याय नम:
                                                                                                
सभी अनिष्ट ग्रहों की दशा के निवारण हेतु सूर्य देव के इस मंत्र का जाप करना चाहिए:
 ऊँ हृीं श्रीं आं ग्रहधिराजाय आदित्याय नमः
                                                                                                
इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान सूर्यदेव को चन्दन समर्पण करना चाहिए-
दिव्यं गन्धाढ़्य सुमनोहरम् |
वबिलेपनं रश्मि दाता चन्दनं प्रति गृह यन्ताम् ||
                                                                                                
इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान सूर्यदेव को वस्त्रादि अर्पण करना चाहिए-
शीत वातोष्ण संत्राणं लज्जाया रक्षणं परम् |
देहा लंकारणं वस्त्र मतः शांति प्रयच्छ में ||
                                                                                                
भगवान सूर्यदेव की पूजा के दौरान इस मंत्र का उच्चारण करते हुए उन्हें यज्ञोपवीत समर्पण करना चाहिए-
नवभि स्तन्तु मिर्यक्तं त्रिगुनं देवता मयम् |
उपवीतं मया दत्तं गृहाणां परमेश्वरः ||
                                                                                                
इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान सूर्यदेव को घृत स्नान कराना चाहिए-
नवनीत समुत पन्नं सर्व संतोष कारकम् |
घृत तुभ्यं प्रदा स्यामि स्नानार्थ प्रति गृह यन्ताम् ||
                                                                                                
भगवान सूर्यदेव की पूजा के दौरान इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें अर्घ्य समर्पण करना चाहिए-
ॐ सूर्य देवं नमस्ते स्तु गृहाणं करूणा करं |
अर्घ्यं च फ़लं संयुक्त गन्ध माल्याक्षतै युतम् ||
                                                                                                
इस मंत्र का उच्चारण करते हुए प्रचंड ज्योति के मालिक भगवान दिवाकर को गंगाजल समर्पण करना चाहिए-
ॐ सर्व तीर्थं समूद भूतं पाद्य गन्धदि भिर्युतम् |
प्रचंण्ड ज्योति गृहाणेदं दिवाकर भक्त वत्सलां ||
                                                                                                
इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान सूर्यदेव को आसन समर्पण करना चाहिए-
विचित्र रत्न खन्चित दिव्या स्तरण सन्युक्तम् |
स्वर्ण सिंहासन चारू गृहीश्व रवि पूजिता ||
                                                                                                
सूर्य पूजा के दौरान भगवान सूर्यदेव का आवाहन इस मंत्र के द्वारा करना चाहिए-
ॐ सहस्त्र शीर्षाः पुरूषः सहस्त्राक्षः सहस्त्र पाक्ष |
स भूमि ग्वं सब्येत स्तपुत्वा अयतिष्ठ दर्शां गुलम् ||
                                                                                                
इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान सूर्यदेव को दुग्ध से स्नान कराना चाहिए-
काम धेनु समूद भूतं सर्वेषां जीवन परम् |
पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थ समर्पितम् ||
                                                                                                
भगवान सूर्यदेव की पूजा के दौरान इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें दीप दर्शन कराना चाहिए-
साज्यं च वर्ति सं बह्निणां योजितं मया |
दीप गृहाण देवेश त्रैलोक्य तिमिरा पहम् ||
                                                                                                
भगवान सूर्यदेव को सुबह-सुबह नमस्कार करने से पूरा दिन शुभ होता है सूर्यदेव को नमस्कार करते हुए इन मंत्रों का जाप करना चाहिए-
ॐ सूर्याय नम:।
ॐ भास्कराय नमः।
ॐ रवये नमः।
ॐ मित्राय नमः।
ॐ भानवे नमः।
ॐ खगय नमः।
ॐ पुषणे नमः।
ॐ मारिचाये नमः।
ॐ आदित्याय नमः।
ॐ सावित्रे नमः।
ॐ अार्काय नमः।
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।
                                                                                                

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Saturday, 6 January 2018

शनिदेव की चालीसा (Shanidev ki Chalisa)

Shanidev
।। ॐ शं शनैश्चराय नमः ।।
हिंदू मान्यता के अनुसार शनिदेव हिंदू धर्म के देवता है। मान्यता के अनुसार शनिदेव का वार शनिवार है। हिंदू मान्यता के अनुसार शनिदेव को दंडाधिकारी व कर्मों का फल देने वाला देवता माना गया है। सूर्यपुत्र शनिदेव के बारे में लोगों के बीच कई बातें व भय होता है। लेकिन मान्यता है कि भगवान शनिदेव केवल लोगों के अच्छे और बुरे कर्मों का ही फल देते हैं। शनि देव की पूजा करने से लोगों के जीवन के कष्ट दूर होते हैं। शनिदेव को हर शनिवार को काले तिल व सरसों का तेल चढा़ना चाहिए। शनिदेव की पूूजा के बाद शनिदेव की आरती व चालीसा पढ़नी चाहिए।शनिदेव की चालीसा व आरती पढ़ने से शनिदेव अत्यधिक प्रसन्न होते हैं ओर शनिदेव की साढेसाती के कष्टों से मुक्ति मिलती है।

शनिदेव की चालीसा (Shanidev ki Chalisa)

॥दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥


।।चौपाई।।
जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिय माल मुक्तन मणि दमके॥

कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्ो, छाया नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं। रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥

पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो। कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥

रावण की गतिमति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवाय तोरी॥

भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजीमीन कूद गई पानी॥

श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई। पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥

रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देवलखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥

तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥

अद्भुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।।

॥दोहा॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों भक्त तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥

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Wednesday, 3 January 2018

गणेश जी की व्रत कथा (Ganesh ki vrat katha)

Ganesh ji
।। ॐ गणेशाय नमः ।।
हिंदू मान्यता के अनुसार गणेश जी हिंदू धर्म के सर्व प्रथम पूजनीय देवता हैं।गणेश जी की कथा सभी  प्रकार के व्रत में सुनी जाती है। यह व्रत उपवास करने पर उस व्रत की कथा के अलावा कही और सुनी जाती है। कहते है इससे व्रत का पूरा फल मिलता है। व्रत की कथा के साथ ही गणेश जी की व्रत कथा भी जरूर
सुननी चाहिए।  गणेश जी की कहानी इस प्रकार है :

गणेश जी की व्रत कथा (Ganesh ji ki vrat katha)

एक बार गणेश जी एक लड़के का वेष धरकर नगर में घूमने निकले।
उन्होंने अपने साथ में चुटकी भर चावल और चुल्लू भर दूध ले लिया।
नगर में घूमते हुए जो मिलता , उसे खीर बनाने का आग्रह कर रहे थे।

बोलते – ” माई खीर बना दे ” लोग सुनकर हँसते।
बहुत समय तक घुमते रहे , मगर कोई भी खीर बनाने को  तैयार नहीं हुआ।
किसी ने ये भी समझाया की इतने से सामान से खीर नहीं बन सकती पर गणेश जी को तो खीर बनवानी ही थी।

अंत में एक गरीब बूढ़ी अम्मा ने उन्हें कहा बेटा चल मेरे साथ में तुझे खीर बनाकर खिलाऊंगी।
गणेश जी उसके साथ चले गए।
बूढ़ी अम्मा ने उनसे चावल और दूध लेकर एक बर्तन में उबलने चढ़ा दिए।
दूध में ऐसा उफान आया  कि बर्तन छोटा पड़ने लगा।

बूढ़ी अम्मा को बहुत आश्चर्य हुआ कुछ समझ नहीं आ रहा था।
अम्मा ने घर का सबसे बड़ा बर्तन रखा।
वो भी पूरा भर गया। खीर बढ़ती जा रही थी। और उसकी खुशबू भी फैल रही थी।

खुशबू से अम्मा की बहु की खीर खाने की इच्छा होने लगी।
उसने एक कटोरी में खीर निकली और दरवाजे के पीछे बैठ कर बोली –
” ले गणेश तू भी खा , मै भी खाऊं  ” और खीर खा ली।

बूढ़ी अम्मा ने बाहर बैठे गणेश जी को आवाज लगाई।
बेटा तेरी खीर तैयार है। आकर खा ले।
गणेशजी बोले अम्मा तेरी बहु ने भोग लगा दिया , मेरा पेट तो भर गया।
खीर तू गांव वालों को खिला दे।

बूढ़ी अम्मा ने गांव वालो को निमंत्रण देने गई। सब हंस रहे थे।
अम्मा के पास तो खुद के खाने के लिए भी कुछ नहीं है गांव को कैसे खिलाएगी।
पर सब आये।

बूढ़ी अम्मा ने सबको पेट भर खीर खिलाई।
सभी ने तृप्त होकर खीर खाई लेकिन फिर भी खीर ख़त्म नहीं हुई।
भंडार भरा ही रहा।
हे गणेश जी महाराज , जैसे खीर का भगोना भरा रहा वैसे ही हमारे घर का भंडार भी सदा भरे रखना।

श्री गणेश जी महाराज की जय !!!

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