Sunday, 31 December 2017

सूर्य देव की चालीसा (Suryadev ki Chalisa)

Suryadev
।। ॐ स: सूर्याय नम: ।।
हिंदू मान्यता के अनुसार सूर्य देव हिंदू धर्म के  देवता हैं। मान्यता के अनुसार सूर्य देव का वार रविवार है। वेदों के अनुसार सूर्य देव का ग्रहों में सर्वप्रथम स्थान है। माना जाता है कि सूर्य देव की आराधना पुत्र की प्राप्ति के लिए शुभ फलदायी होती है। सूर्य देव को एक प्रत्यक्ष देव माना जाता है। सूर्य देव की पूजा में आरती के साथ उनकी चालीसा भी पढ़ी जाती है।
सूर्य देव की चालीसा (Suryadev ki Chalisa)
सूर्य चालीसा चालीस दोहों से बनी एक भक्तिमय स्तुति है जिसमें सूर्यदेव का वर्णन है।
॥दोहा॥
कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग,
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥
॥चौपाई॥
जय सविता जय जयति दिवाकर!, सहस्त्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥
भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!, सविता हंस! सुनूर विभाकर॥ 1॥
विवस्वान! आदित्य! विकर्तन, मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥
अम्बरमणि! खग! रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥ 2॥
सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि॥
अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥3॥
मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी॥
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरन्दर लज्जित होते॥4
मित्र मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता सूर्य अर्क खग कलिकर॥
पूषा रवि आदित्य नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥5॥
द्वादस नाम प्रेम सों गावैं, मस्तक बारह बार नवावैं॥
चार पदारथ जन सो पावै, दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै॥6॥
नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर को कृपासार यह॥
सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई॥7॥
बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक टरते॥
उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन॥8॥
धन सुत जुत परिवार बढ़तु है, प्रबल मोह को फंद कटतु है॥
अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते॥9॥
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देस पर दिनकर छाजत॥
भानु नासिका वासकरहुनित, भास्कर करत सदा मुखको हित॥10॥
ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे॥
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्म तेजसः कांधे लोभा॥11॥
पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर॥
युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्म सुउदरचन॥12॥
बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटिमंह, रहत मन मुदभर॥
जंघा गोपति सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा॥13॥
विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी॥
सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे॥14॥
अस जोजन अपने मन माहीं, भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ॥
दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै, जोजन याको मन मंह जापै॥15॥
अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनन्द भरता॥
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही॥
मंद सदृश सुत जग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके॥16॥
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा॥
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटतसो भवके भ्रम सों॥17॥
परम धन्य सों नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी॥
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मधु वेदांग नाम रवि उदयन॥18॥
भानु उदय बैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै॥
यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता॥19॥
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रविहैं मलमासहिं॥20॥
॥दोहा॥
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य,
सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य॥

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Saturday, 30 December 2017

शनिदेव की आरती (shanidev ki aarti)

Shanidev
।। ॐ शं शनैश्चराय नमः ।।
हिंदू मान्यता के अनुसार शनिदेव को दंडाधिकारी कहा जाता है।मान्यता के अनुसार शनिदेव अच्छे बुरे कर्मों का फल देते हैं।शनिदेव के पिता सूर्यदेव और माता छाया है। शनिदेव की पूूजा को होती है शनिदेव के पूजन में तिल व सरसों का तेल शनिदेव पर चढा़ते हैं।शनिदेव की पूूजा मेें शनिदेव की चालीसा तथाा आरती को जरूर पढ़नाा चाहिए ऐसा करने से शनिदेव अत्यधिक प्रसन्न होते हैं।

शनिदेव की आरती (shanidev ki aarti)

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
श्याम अंग वक्र-दृ‍ष्टि चतुर्भुजा धारी।
निलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
क्रीट मुकुट शीश सहज दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माल गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
मोदक और मिष्ठान चढ़े, चढ़ती पान सुपारी।
लोहा, तिल, तेल, उड़द महिषी है अति प्यारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान हम हैं शरण तुम्हारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥

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Thursday, 28 December 2017

लक्ष्मी माता के 108 नाम (108 names of goddess Lakshmi ji)

Lakshmi mata
।। ॐ नमो लक्ष्मी नारायण ।।
हिंदू मान्यता के अनुसार लक्ष्मी माता का पूजन शुक्रवार को होता है।मान्यता के अनुसार लक्ष्मी माता को धन वैभव सुख समृद्धि की देवी कहा जाता है।लक्ष्मी माता को कई रूप में देखा जाता है व लक्ष्मी माता को कई नामों से जाना जाता है वे नाम निम्न प्रकार से दर्शाए गए हैं:-

लक्ष्मी माता के 108 नाम (108 names of goddess Lakshmi ji)

1 प्रकृति = प्रकृति 
2 विकृति = दो रूपी प्रकृति
3 विद्या = बुद्धिमत्ता
4 सर्वभूतहितप्रदा= ऐसा व्यक्ति जो संसार के सारे सुख दे सके 
5 श्रद्धा = जिसकी पूजा होती है 
6 विभूति = धन की देवी
7 सुरभि स्वर्गीय = देवी
8 परमात्मिका = सर्वव्यापी देवी
9 वाची = जिसके पास अमृत भाषण की तरह हो
10 पद्मालया = जो कमल पर रहती है 
11 पद्मा = कमल
12 शुचि = पवित्रता की देवी
13 स्वाहा = शुभ
14 स्वधा = एस अव्यक्ति जो अशुभता को दूर करे 
15 सुधा = अमृत की देवी
16 धन्या =आभार का अवतार
17 हिरण्मयीं = जिसकी दिखावट गोल्डन है 
18 लक्ष्मी =धन और समृद्धि की देवी
19 नित्यपुष्ट = जिससे दिन पे दिन शक्ति मिलती है 
20 विभा जिसका चेहरा दीप्तिमान है 
21 अदिति = जिसकी चमक सूरज की तरह है 
22 दीत्य =जो प्रार्थना का जवाब देता है 
23 दीप्ता =लौ की तरह
24 वसुधा = पृथ्वी की देवी
25 वसुधारिणी = पृथ्वी की रक्षक
26 कमला = कमल
27 कांता = भगवान विष्णु की पत्नी
28 कामाक्षी = आकर्षक आंखवाली देवी
29 कमलसम्भवा = जो कमल मे से उपस्तित होती है 
30 अनुग्रहप्रदा = जो शुभकामनाओ का आशीर्वाद देती है 
31 बुद्धि = बुद्धि की देवी
32 अनघा = निष्पाप या शुद्ध की देवी
33 हरिवल्लभी = भगवान विष्णु की पत्नी
34 अशोक = दुःख को दूर करने वाली
35 अमृता = अमृत की देवी
36 दीपा = दितिमान दिखने वाली
37 लोकशोकविनाशिनी = सांसारिक मुसीबतों को निअक्लने वाली
38 धर्मनिलया = अनन्त कानून स्थापित करने वाली
39 करुणा = अनुकंपा देवी
40 लोकमट्री = ब्रह्माण्ड की देवि 
41 पद्मप्रिया = कमल की प्रेमी
42 पद्महस्ता = जिसके हाथ कमल की तरह है 
43 पद्माक्ष्य = जिसकी आँख कमल के जैसी है 
44 पद्मसुन्दरी = कमल की तरह सुंदर
45 पद्मोद्भवा = कमल से उपस्तित होने वलि
46 पद्ममुखी = कमल के दीप्तिमान जैसी देवि
47 पद्मनाभप्रिया = पद्मनाभ की प्रेमिका - भगवान विष्णु
48 रमा = भगवान विष्णु को खुश करने वाले
49 पद्ममालाधरा = कमल की माला पहनने वाली
50 देवी = देवी
51 पद्मिनी = कमल की तरह
52 पद्मगन्धिनी = कमल की तरह खुशनु है जिसकी
53 पुण्यगन्धा = दिव्य सुगंधित देवी
54 सुप्रसन्ना = अनुकंपा देवी
55 प्रसादाभिमुखी = वरदान और इच्छाओं को अनुदान देने वाली
56 प्रभा = देवि जिसका दीप्तीमान सूरज की तरह हो 
57 चंद्रवंदना = जिसका दीप्तिमान चन्द्र की तरह हो 
58 चंदा = चन्द्र की तरह शांत 
59 चन्द्रसहोदरी = चंद्रमा की बहन
60 चतुर्भुजा = चार सशस्त्र देवी
61 चन्द्ररूपा = चंद्रमा की तरह सुंदर
62 इंदिरा = सूर्य की तरह चमक
63 इन्दुशीतला = चाँद की तरह शुद्ध
64 अह्लादजननी = ख़ुशी देने वाली
65 पुष्टि = स्वास्थ्य की देवी
66 शिव = शुभ देवी
67 शिवाकारी = शुभ का अवतार
68 सत्या = सच्चाई
69 विमला = शुद्ध
70 विश्वजननी = ब्रह्माण्ड की देवि
71 पुष्टि = धन का स्वामी
72 दरिद्रियनशिनी = गरीबी को निकलने वाली
73 प्रीता पुष्करिणी = देवि ज्सिजी आँखें सुखदायक है 
74 शांता = शांतिपूर्ण देवी
75 शुक्लमालबारा = सफ़द वस्त्र पेहेंने वलि
76 भास्करि = सूरज की तरह चमकदार

77 बिल्वनिलया = जो बिल्व पेड़ के निच्चे रहता है 
78 वरारोहा = देवि जो इच्छाओ का दान देने वलि
79 यशस्विनी = प्रसिद्धि और भाग्य की देवी
80 वसुंधरा = धरती माता की बेटी
81 उदरंगा = जिसका शरीर सुंदर है 
82 हरिनी = हिरण की तरह है जो
83 हेमामालिनी = जिसके पास स्वर्ण हार है 
84 धनधान्यकी = स्वास्थ प्रदान करने वलि
85 सिद्धी = रक्षक
86 स्टरीनासौम्य = महिलाओं पर अच्छाई बरसाने वाली 
87 शुभप्रभा = जो शुभता प्रदान करे 
88 नृपवेशवगाथानंदा = महलों में रहता है जो 
89 वरलक्ष्मी = समृद्धि की दाता 
90 वसुप्रदा = धन को प्रदान करने वाली
91 शुभा = शुभ देवी
92 हिरण्यप्राका = सोने मे
93 समुद्रतनया = महासागर की बेटी
94 जया = विजय की देवी
95 मंगला = सबसे शुभ
96 देवी = देवता या देवी
97 विष्णुवक्षः = जिसके के साइन भगवान् विष्णु रहते है 
98 विष्णुपत्नी = भगवान विष्णु की पत्नी
99 प्रसन्नाक्षी = जीवंत आंखवाले
100 नारायण समाश्रिता = जो भगवान् नारायण के चरण मेइन जान चाहता है 
101 दरिद्रिया ध्वंसिनी = गरीबी समाप्त करने वाली
102 डेवलष्मी = देवी
103 सर्वपद्रवनिवर्णिनी = दुःख दूर करने वाली
104 नवदुर्गा = दुर्गा के सभी नौ रूप
105 महाकाली = काली देवी का एक रूप
106 ब्रह्मा-विष्णु-शिवात्मिका = ब्रह्मा विष्णु शिव के रूप में देवी
107 त्रिकालज्ञानसम्पन्ना = जिससे अतीत, वर्तमान और भविष्य के बारे में पता है 
108 भुवनेश्वराय = ब्रह्माण्ड की देवि या देवता 

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विष्णु भगवान के मंत्र (Vishnu bhagwan ke mantra)

Vishnu bhagwan
।। ॐ नमो भगवते् वासुदेवाय ।।
हिंदू मान्यता के अनुसार विष्णु भगवान त्रिदेवों में से एक हैं। विष्णु जी को सृष्टि का संचालक कहा जाता हैं। विष्णु की पत्नी लक्ष्मी है। विष्णु जी क्षीर सागर में विराजमान रहते हैं। यह अपने भक्तों पर विशेष कृपा दृष्टि बनाए रखते है और उन्हें शुभ फल प्रदान करते हैं। इन मंत्रों द्वारा विष्णु जी जल्द प्रसन्न हो जाते हैं।
विष्णु भगवान के मंत्र 
                                                                                                
भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र का जाप करना चाहिए

ॐ नमोः नारायणाय. ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय ||

                                                                                                
दरिद्रता से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु के इस मंत्र का जाप करना चाहिए।

ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।।

                                                                                                
घर में सुख-संपत्ति लाने के लिए विष्णु जी के इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
शांता कारम भुजङ्ग शयनम पद्म नाभं सुरेशम।
विश्वधारंगनसदृशम्मेघवर्णं शुभांगम।
लक्ष्मी कान्तं कमल नयनम योगिभिर्ध्याननगमयम।
वन्दे विष्णुम्भवभयहरं सर्व्वलोकैकनाथम।।

                                                                                                
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए भगवान विष्णु को इस मंत्र द्वारा प्रसन्न करना चाहिए।
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे।
हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।

ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान।
यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।

                                                                                                
घर की परेशानी को दूर करने और खुशी के लिए विष्णु जी के इन मंत्रों का जाप करना चाहिए।
ऊँ नारायणाय विद्महे।
वासुदेवाय धीमहि।
तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव,
त्वमेव विद्या, द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्वं ममः देवदेवा।।

                                                                                                

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Wednesday, 27 December 2017

श्री विष्णु चालीसा (shri Vishnu chalisa)

Vishnu bhagwan
।। ॐ नमो भगवते् वासुदेवाय नमः ।।
हिन्दू मान्यता के अनुसार विष्णु भगवान हिंदू धर्म के देवता हैं। विष्णु जी त्रिदेवों में से एक बताए गए हैं। कहा जाता है कि विष्णु भगवान की व्रत कथा के बाद विष्णु भगवान की चालीसा और आरती को पढ़ना या सुनना चाहिए। मान्यतानुसार जगत का पालन श्री हरि विष्णु जी ही करते हैं। भगवान विष्णु को दया-प्रेम का सागर माना जाता है।  विष्णु जी देवी लक्ष्मी (विष्णुजी की पत्नी) के साथ क्षीरसागर में वास करते हैं। सच्चे मन से आराधना करने पर वह व्यक्ति की सारी इच्छाएं पूर्ण करते हैं।  

श्री विष्णु चालीसा (shri Vishnu chalisa)

॥ दोहा ॥
जै जै श्री जगत पति जगदाधार अनन्त । 
विश्वेश्वर अखिलेश अज सर्वेश्वर भगवन्त ॥

॥ चौपाई ॥
जै जै धरणीधर श्रुति सागर । जयति गदाधर सद्गुण आगर ॥
श्री वसुदेव देवकी नंदन । वासुदेव नाशन भव फन्दन ॥1॥
नमो नमो सचराचर स्वामी । परंब्रह्म प्रभु नमो नमो नमामि ॥
नमो नमो त्रिभुवन पति ईश । कमलापति केशव योगीश ॥2॥

गरुड़ध्वज अज भव भय हारी । मुरलीधर हरि मदन मुरारी ॥
नारायण श्रीपति पुरुषोत्तम । पद्मनाभि नरहरि सर्वोत्तम ॥3॥
जै माधव मुकुन्द वनमाली । खल दल मर्दन दमन कुचाली ॥
जै अगणित इन्द्रिय सारंगधर । विश्व रुप वामन आन्नद कर ॥4॥

जै जै लोकाध्यक्ष धनंजय । सहस्त्रज्ञ जगन्नाथ जयति जै ॥
जै मधुसूदन अनुपम आनन । जयति वायु वाहन वज्र कानन ॥5॥
जै गोविन्द जनार्दन देवा । शुभ फल लहत गहत तव सेवा ॥
श्याम सरोरुह सम तन सोहत । दर्शन करत सुर नर मुनि मोहत ॥6॥

भाल विशाल मुकुट सिर साजत । उर वैजन्ती माल विराजत ॥
तिरछी भृकुटि चाप जनु धारे । तिन तर नैन कमल अरुनारे ॥7॥
नासा चिबुक कपोल मनोहर । मृदु मुस्कान कुञ्ज अधरन पर ॥
जनु मणि पंक्ति दशन मन भावन । बसन पीत तन परम सुहावन ॥8॥

रुप चतुर्भज भूषित भूषण । वरद हस्त मोचन भव दूषण ॥
कंजारुन सम करतल सुन्दर । सुख समूह गुण मधुर समुन्दर ॥9॥
कर महँ लसित शंख अति प्यारा । सुभग शब्द जै देने हारा ॥
रवि सम चक्र द्वितीय कर धारे । खल दल दानव सैन्य संहारे ॥10॥

तृतीय हस्त महँ गदा प्रकाशन । सदा ताप त्रय पाप विनाशन ॥
पद्म चतुर्थ हाथ महँ धारे । चारि पदारथ देने हारे ॥11॥
वाहन गरुड़ मनोगतिवाना । तिहुँ त्यागत जन हित भगवाना ॥
पहुँचि तहाँ पत राखत स्वामी । हो हरि सम भक्तन अनुरागी ॥12॥

धनि धनि महिमा अगम अन्नता । धन्य भक्तवत्सल भगवन्ता ॥
जब जब सुरहिं असुर दुख दीन्हा । तब तब प्रकटि कष्ट हरि लीन्हा ॥13॥
सुर नर मुनि ब्रहमादि महेशू । सहि न सक्यो अति कठिन कलेशू ॥
तब तहँ धरि बहुरुप निरन्तर । मर्द्यो दल दानवहि भयंकर ॥14॥

शय्या शेष सिन्धु बिच साजित । संग लक्ष्मी सदा विराजित ॥
पूरन शक्ति धन्य धन खानी । आन्नद भक्ति भरणी सुख दानी ॥15॥
जासु विरद निगमागम गावत । शारद शेष पार नहीं पावत ॥
रमा राधिका सिय सुख धामा । सोही विष्णु कृष्ण अरु रामा ॥16॥

अगणित रुप अनूप अपारा । निर्गुण सगण स्वरुप तुम्हारा ॥
नहिं कछु भेद वेद अस भासत । भक्तन से नहिं अन्तर राखत ॥17॥
श्री प्रयाग दुवाँसा धामा । सुन्दरदास तिवारी ग्रामा ॥
जग हित लागि तुम्हिं जगदीशा । निज मति रच्यो विष्णु चालीसा ॥18॥

जो चित्त दै नित पढ़त पढ़ावत । पूरन भक्त्ति शक्ति सरसावत ॥
अति सुख वसत रुज ऋण नाशत । वैभव विकासत सुमति प्रकाशत ॥19॥
आवत सुख गावत श्रुति शारद । भाषन व्यास वचन ऋषि नारद ॥
मिलत सुभग फल शोक नसावत । अन्त समय जन हरि पद पावत ॥20॥

॥ दोहा ॥
प्रेम सहित गहि ध्यान महँ हृदय बीच जगदीश ।
अर्पित शालिग्राम कहँ करि तुलसी नित शीश ॥
क्षणभंगुर तनु जानि करि अहंकार परिहार ।
सार रुप ईश्वर लखै तजि असार संसार ॥

सत्य शोध करि उर गहै एक ब्रह्म ओंकार ।
आत्मबोध होवै तबै मिलै मुक्त्ति के द्वार ॥
शान्ति और सद्भाव कहँ जब उर फूलहिं फूल ।
चालिसा फल लहहिं जहँ रहहिं ईश अनुकूल ॥

एक पाठ जन नित करै विष्णु देव चालीस ।
चार पदारथ नवहुँ निधि देय द्वारिकाधीश ॥

इन्हें भी click करके पढ़ें:-

- विष्णु भगवान की व्रत कथा
- विष्णु भगवान की आरती
- विष्णु भगवान के 108 नाम
- विष्णु भगवान के मंत्र 

Monday, 25 December 2017

शिव चालीसा (Shiv Chalisa)

।। ॐ नम: शिवाय ।।
हिंदू मान्यता के अनुसार हिंदू धर्म में त्रिदेवों की कल्पना की गई है। मान्यता है कि यही त्रिदेव विश्व के रचयिता, संचालक और पालक हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव को संहारक माना गया है। शिवजी को उनके भोले स्वभाव के कारण भोलेनाथ भी कहा जाता है। कहा जाता है कि शिवजी की आराधना करने वाले जातक मृत्यु का भय भी नहीं सताता।
शिवजी की आराधना के लिए सबसे आसान मंत्र है "ऊं नम: शिवाय"। इस मंत्र के साथ शिवजी की पूजा में शिव चालीसा का भी उपयोग किया जाता है। शिव चालीसा हिन्दू धार्मिक पुस्तकों में भी वर्णित है।

शिव चालीसा (Shiv Chalisa)

।।दोहा।।
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

।।चौपाई।।

जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥1॥

मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥2॥

देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥3॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥4॥

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥5॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥6॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥7॥

धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥8॥

नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥9॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥10॥

कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥दोहा॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

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Sunday, 24 December 2017

शिवजी की व्रत कथा (shivji ki vrat katha)

Shiv Shankar ji
।। ॐ नम: शिवाय ।।
हिंदू मान्यता के अनुसार शिव जी का वार सोमवार है। मान्यता के अनुसार कहा जाता है की भगवान की व्रत व पूजा करने से भगवान  जल्दी प्रसन्न  होते हैं।यदि बाबा भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए आप भी सोमवार का व्रत कर रहे हैं, तो शिव व्रत कथा को पढ़कर या सुनकर इस उपवास को पूर्ण करें...
शिवजी की  व्रत की विधि (shivji ki vrat vidhi)
पुराणों के अनुसार कहा जाता है कि सोमवार व्रत में व्यक्ति को प्रातः स्नान करके शिव जी को जय और बेल-पत्र चढा़ना चाहिए तथा शिव-गौरी की पूजा करनी चाहिए। शिव पूजन के बाद सोमवार व्रत कथा सुननी चाहिए। इसके बाद केवल एक समय ही भोजन करना चाहिए। साधारण रूप से सोमवार का व्रत दिन के तीसरे पहर तक होता है। मतलब शाम तक रखा जाता है। सोमवार व्रत तीन प्रकार का होता है प्रति सोमवार व्रत, सौम्य प्रदोष व्रत और सोलह सोमवार का व्रत। इन सभी व्रतों के लिए एक ही विधि होती है।
शिवजी की व्रत कथा (shivji ki vrat katha)
एक समय की बात है, किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी इस कारण वह बहुत दुखी था। पुत्र प्राप्ति के लिए वह प्रत्येक सोमवार व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा करता था।
उसकी भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती प्रसन्न हो गईं और भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का आग्रह किया। पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिवजी ने कहा कि 'हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है। लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति का मान रखने के लिए उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा जताई।
माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उसके बालक की आयु केवल बारह वर्ष होगी। माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत को साहूकार सुन रहा था। उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही दुख। वह पहले की भांति शिवजी की पूजा करता रहा।
कुछ समय के बाद साहूकार के घर एक पुत्र का जन्म हुआ। जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया। साहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन दिया और कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ और मार्ग में यज्ञ कराना। जहां भी यज्ञ कराओ वहां ब्राह्मणों को भोजन कराते और दक्षिणा देते हुए जाना।
दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े। रात में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था। लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था। राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक चाल सोची।
साहूकार के पुत्र को देखकर उसके मन में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा। लड़के को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया। लेकिन साहूकार का पुत्र ईमानदार था। उसे यह बात न्यायसंगत नहीं लगी।
उसने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि 'तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है। मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं।
जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई। राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया जिससे बारात वापस चली गई। दूसरी ओर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया। जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई उसी दिन यज्ञ रखा गया। लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर सो जाओ।
शिवजी के वरदानुसार कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गए। मृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप शुरू किया। संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे। पार्वती ने भगवान से कहा- स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहा। आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें।
जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया। अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है. लेकिन मातृ भाव से विभोर माता पार्वती ने कहा कि हे महादेव, आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे।
माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया। शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया। शिक्षा समाप्त करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था। उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी खातिरदारी की और अपनी पुत्री को विदा किया।
इधर साहूकार और उसकी पत्नी भूखे-प्यासे रहकर बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है। इसी प्रकार जो कोई सोमवार व्रत करता है या कथा सुनता और पढ़ता है उसके सभी दुख दूर होते हैं और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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