Wednesday 27 December 2017

श्री विष्णु चालीसा (shri Vishnu chalisa)

Vishnu bhagwan
।। ॐ नमो भगवते् वासुदेवाय नमः ।।
हिन्दू मान्यता के अनुसार विष्णु भगवान हिंदू धर्म के देवता हैं। विष्णु जी त्रिदेवों में से एक बताए गए हैं। कहा जाता है कि विष्णु भगवान की व्रत कथा के बाद विष्णु भगवान की चालीसा और आरती को पढ़ना या सुनना चाहिए। मान्यतानुसार जगत का पालन श्री हरि विष्णु जी ही करते हैं। भगवान विष्णु को दया-प्रेम का सागर माना जाता है।  विष्णु जी देवी लक्ष्मी (विष्णुजी की पत्नी) के साथ क्षीरसागर में वास करते हैं। सच्चे मन से आराधना करने पर वह व्यक्ति की सारी इच्छाएं पूर्ण करते हैं।  

श्री विष्णु चालीसा (shri Vishnu chalisa)

॥ दोहा ॥
जै जै श्री जगत पति जगदाधार अनन्त । 
विश्वेश्वर अखिलेश अज सर्वेश्वर भगवन्त ॥

॥ चौपाई ॥
जै जै धरणीधर श्रुति सागर । जयति गदाधर सद्गुण आगर ॥
श्री वसुदेव देवकी नंदन । वासुदेव नाशन भव फन्दन ॥1॥
नमो नमो सचराचर स्वामी । परंब्रह्म प्रभु नमो नमो नमामि ॥
नमो नमो त्रिभुवन पति ईश । कमलापति केशव योगीश ॥2॥

गरुड़ध्वज अज भव भय हारी । मुरलीधर हरि मदन मुरारी ॥
नारायण श्रीपति पुरुषोत्तम । पद्मनाभि नरहरि सर्वोत्तम ॥3॥
जै माधव मुकुन्द वनमाली । खल दल मर्दन दमन कुचाली ॥
जै अगणित इन्द्रिय सारंगधर । विश्व रुप वामन आन्नद कर ॥4॥

जै जै लोकाध्यक्ष धनंजय । सहस्त्रज्ञ जगन्नाथ जयति जै ॥
जै मधुसूदन अनुपम आनन । जयति वायु वाहन वज्र कानन ॥5॥
जै गोविन्द जनार्दन देवा । शुभ फल लहत गहत तव सेवा ॥
श्याम सरोरुह सम तन सोहत । दर्शन करत सुर नर मुनि मोहत ॥6॥

भाल विशाल मुकुट सिर साजत । उर वैजन्ती माल विराजत ॥
तिरछी भृकुटि चाप जनु धारे । तिन तर नैन कमल अरुनारे ॥7॥
नासा चिबुक कपोल मनोहर । मृदु मुस्कान कुञ्ज अधरन पर ॥
जनु मणि पंक्ति दशन मन भावन । बसन पीत तन परम सुहावन ॥8॥

रुप चतुर्भज भूषित भूषण । वरद हस्त मोचन भव दूषण ॥
कंजारुन सम करतल सुन्दर । सुख समूह गुण मधुर समुन्दर ॥9॥
कर महँ लसित शंख अति प्यारा । सुभग शब्द जै देने हारा ॥
रवि सम चक्र द्वितीय कर धारे । खल दल दानव सैन्य संहारे ॥10॥

तृतीय हस्त महँ गदा प्रकाशन । सदा ताप त्रय पाप विनाशन ॥
पद्म चतुर्थ हाथ महँ धारे । चारि पदारथ देने हारे ॥11॥
वाहन गरुड़ मनोगतिवाना । तिहुँ त्यागत जन हित भगवाना ॥
पहुँचि तहाँ पत राखत स्वामी । हो हरि सम भक्तन अनुरागी ॥12॥

धनि धनि महिमा अगम अन्नता । धन्य भक्तवत्सल भगवन्ता ॥
जब जब सुरहिं असुर दुख दीन्हा । तब तब प्रकटि कष्ट हरि लीन्हा ॥13॥
सुर नर मुनि ब्रहमादि महेशू । सहि न सक्यो अति कठिन कलेशू ॥
तब तहँ धरि बहुरुप निरन्तर । मर्द्यो दल दानवहि भयंकर ॥14॥

शय्या शेष सिन्धु बिच साजित । संग लक्ष्मी सदा विराजित ॥
पूरन शक्ति धन्य धन खानी । आन्नद भक्ति भरणी सुख दानी ॥15॥
जासु विरद निगमागम गावत । शारद शेष पार नहीं पावत ॥
रमा राधिका सिय सुख धामा । सोही विष्णु कृष्ण अरु रामा ॥16॥

अगणित रुप अनूप अपारा । निर्गुण सगण स्वरुप तुम्हारा ॥
नहिं कछु भेद वेद अस भासत । भक्तन से नहिं अन्तर राखत ॥17॥
श्री प्रयाग दुवाँसा धामा । सुन्दरदास तिवारी ग्रामा ॥
जग हित लागि तुम्हिं जगदीशा । निज मति रच्यो विष्णु चालीसा ॥18॥

जो चित्त दै नित पढ़त पढ़ावत । पूरन भक्त्ति शक्ति सरसावत ॥
अति सुख वसत रुज ऋण नाशत । वैभव विकासत सुमति प्रकाशत ॥19॥
आवत सुख गावत श्रुति शारद । भाषन व्यास वचन ऋषि नारद ॥
मिलत सुभग फल शोक नसावत । अन्त समय जन हरि पद पावत ॥20॥

॥ दोहा ॥
प्रेम सहित गहि ध्यान महँ हृदय बीच जगदीश ।
अर्पित शालिग्राम कहँ करि तुलसी नित शीश ॥
क्षणभंगुर तनु जानि करि अहंकार परिहार ।
सार रुप ईश्वर लखै तजि असार संसार ॥

सत्य शोध करि उर गहै एक ब्रह्म ओंकार ।
आत्मबोध होवै तबै मिलै मुक्त्ति के द्वार ॥
शान्ति और सद्भाव कहँ जब उर फूलहिं फूल ।
चालिसा फल लहहिं जहँ रहहिं ईश अनुकूल ॥

एक पाठ जन नित करै विष्णु देव चालीस ।
चार पदारथ नवहुँ निधि देय द्वारिकाधीश ॥

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